Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति २) ६४

८. ।गुरू जी डेहरे आए। मसंदां ळ दंड देण हित तारी॥
७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रुति २ अगला अंसू>>९
दोहरा: निसा बसे बिसराम करि, श्री गुर क्रिपा निधान।
बडीप्राति तारी करी, कहि बजवाइ निशान ॥१॥
चौपई: ततछिन ग़ीन तुरंगनि डारे।
श्री गुर शसत्र बसत्र तन धारे।
डील बिलद मतंग मंगायो।
ग़रीदार जिह झूल सुहायो ॥२॥
भए अरूढनि शोभति ऐसे।
ऐरावति पर सुरपति१ जैसे।
तबि मातुल किरपाल बुलायो।
हाथी पर पशचाति चढायो ॥३॥
नद चंद हज़थारनि धारे।
चढो तुरंगम पर बल भारे।
संगो संग पंच जो भ्राता।
हय अरोहि मग कीनि प्रयाता२ ॥४॥
सैना संग पंच सै और।
गमने कुल सोढी सिरमौर।
अपर सभिनि को नगर टिकायो।
चलति भए दुंदभि गरजायो ॥५॥
रामराइ की जाहि मुकान३।
मिलहि जहां कहि करहि बखानि४।
दून महां रमनीक निहारति।
दल फल फूल ब्रिज़छ गन धारति ॥६॥
दोनहु दिशि सैलनि की सैल५।
नीके करति जाति गुर गैल६।
सभि के अज़ग्र नाथ को हाथी।


१इंद्र।
२घोड़े ते सवार होके रसते ते तुर पए।
३मुकाण देण चज़ले हन।
४(इस तर्हां) कहिदे हन।
५सैर।
६राहविच।

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