Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ३)५३४

६१. ।धुज़टे जोधा आदि सिज़खां प्रती अुपदेश॥
६०ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ३ अगला अंसू>>६२
दोहरा: धुज़टे जोधा जाम* दै श्री अरजन ढिग आइ।
करि बंदन बैठे तबै बूझे सहिज सुभाइ ॥१॥
चौपई: श्री गुर! इम है हुकम तुमारो।
-मन इकाग्र करि भजन सुधारो-।
करि हारे हम अनिक अुपाइ।
नहीण इकागरता मन पाइ ॥२॥
सुनि सतिगुर कहि अुज़तर तिन को।
प्रथम न लखहु१ सुभाव जि मन को।
लगे पछाननि अबि गति अंतरि२।
इसी जतन महि रहो निरंतर ॥३॥
निकसहि मन पुन जोरहु३ आनि।
पुन पुन रोकहु बनि सवधान।
सहिज सुभाइक थिरता होइ।
पावहु श्रेय कशट गन खोइ ॥४॥
सुनि अुपदेश जतन तिम ठाना।
सो प्रापति होए कज़लाना।
मं के संग पिराणा आयो।
सतिगुर आगे सीस निवायो ॥५॥
दिहु अुपदेश होहि कलाने।
श्री मुख ते शुभ वाक बखाने।
सरवर केमुरीद तुम दोअू।
सिज़खी कठन कमाइ न सोअू४ ॥६॥
कहनि लगे तुम दरशन भयो।
तबि ते हमरो मन फिरि गयो।
हिंदु जनम हम तुरक मनावैण।
गयो धरम परलोक गवावैण ॥७॥


*पा:-सूद। ११ वीण वार विच जोधा ते जामू धुज़टे लिखिआ है।
१नहीण सी जाणदे।
२(अंदर =) दिल दी हालत।
३जोड़ो (नाम विच)।
४कमा नहीण होणी।

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