Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ३) ५४०
६२. ।सेठा अुगवंदा आदि सिज़खां प्रति अुपदेश॥
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दोहरा: सेठा अुगवंदा दुअू, अपर सभागा तीन।
चूहणीए पुरि महि बसहि जाति अरोड़े चीन ॥१॥
चौपई: सिज़खनि की सेवा नित करैण।
निस महि जाग गुरू अुर धरैण।
छुधिति सिज़ख को देति अहारा।
हेरि नगन को बसत्र अुदारा ॥२॥
श्री अरजन को बंदन ठानी।
हाथ जोरि अरदास बखानी।
भोजन इहां देति घर मांही।
पितरन को पहुचति कै नांही? ॥३॥
श्री मुख ते तिन साथ बखाना।
पहुचति पिज़त्रन हित जे दाना।
श्री नानक कोकहो प्रमान।
सो शलोक समझहु तिम जानि ॥४॥
स्री मुखवाक:
नानक अगै सो मिलै जि खटे घाले देइ ॥१॥
चौपई: सुनि सिज़खनि पुन कीनि संदेह।
प्रानी इहां अहार सु देहि।
पितर सुरग कै नरक मझारी।
किधौण जून कैसे को धारी१ ॥५॥
तहि पहुचहि किम? संसै इही।
पुन सतिगुर अुज़तर दिय सही।
जबि पितरनि को दिन चलि आवै।
तिन हित करि भोजन जो खावै ॥६॥
पितर बरन चारन समुदाइ।
बिज़प्रनि बिखै प्रवेशहि आइ।
सिज़खन कै गन पितर जु अहैण।
सो सिज़खनि महि बासो लहैण ॥७॥
जथा चंग२ बंधी संग डोर।
१अथवा किसे तर्हां दी कोई जून धार चुज़का होवे।
२गुज़डी।