Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ७२
बहु नर को भोजन किय खाही१ ॥१५॥
रामकुइर के ढिग ले गए।
पाइस२ सिता३ घ्रिज़त इक मए।
जाइ अगारी थाल टिकायव।
रुचि सोण सादल करि करि खायव ॥१६॥
पुनहि पान करि सीतल पानी।
राहक सोण तबि बोलो बानी।
नीको भोजन करि कै लाइव।
कारन कवन? सु देहु सुनाइव ॥१७॥
हाथ जोरि तिन कहो बुझाई।
हुतो खाह भोजन समुदाई।
अज़ग्र आप के पूरब लायो।
पाइस सिता घ्रिज़त जो खायो ॥१८॥
अधिक प्रसंन होइ बच कहो।
तिस महिण साद हमहिण बहु लहो।
यां ते खाह ग्राम मैण नीत।
होवहि, दे अहार शुभ हीत ॥१९॥
बाक बदन ते एव बखाना।
सहिज सुभाइकब्रिती समाना।
तिस दिन ते म्रितु नर हुइ एक।
गमने जम पुरि जबहि अनेक ॥२०॥
परो ग्राम महिण रौरा तबिहूं।
कहां भयो? मिलि भाखैण सभिहूं।
कौन ग्राम ने दोश कमायो।
जिस ते दुखद समां अस आयो ॥२१॥
सभि महिण तिस राहक ने कहो।
सुनहु हेतु मैण इक अस लहो।
खाह भयो जिस दोस हमारे।
करि कै पाइस सिता अहारे ॥२२॥
१बरसी मोए दी।
२खीर।
३खंड।