Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ३) ५९८

६९. ।भाई गुरमुख ते भाई भिखारी दा प्रसंग॥
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दोहरा: एक सिज़ख सतिगुर निकट,
गुरमुख तिस को नाम।
हाथ जोरि बिनती करी,
मैण रावर की साम ॥१॥
चौपई: गुर सनमुख सिख१ मानहि भाना।
मोहि दिखावहु दिखि दुख हाना।
सुनि श्री अरजन गिरा अुचारी।
पुर गुजरात सुनाम भिखारी* ॥२॥
तिह दरसहु अबि करहु पयाना।गुरमुख गुर बच मानि महाना२।
चलो बिचारति -सिख बड होइ।
सतिगुर आप बतायहु जोइ ॥३॥
प्रभु भांा किम मानति रहै।
कहां क्रित करि ब्रिज़त+ को लहै३-।
मग अुलघ पहुचो गुजरात।
नाम भिखारी पूछो जाति ॥४॥
ग्रिह मैण गयो सु मंगल हेरा४।
गावैण त्रिया बाहु सुत केरा।
किरत कमावति पिखो भिखारी।
सीवति सतरंजी जे फारी५ ॥५॥
पैरी पैंा कहि थिर६ गुरमुख।
पठो मोहि गुर ने भो सनमुख!
सुनति भिखारी अुठि सनमाना।
नमहि कीनि बैठावनि ठाना ॥६॥

१गुरू दे सनमुख सिख (जो)।
*भाई गुरदास जी दी ११वीण वार विच इह प्रसंग छेवेण गुराण दे सिज़खां विच है।
२बहुत मंनं वाले।
+पा:-किरत कर बित।
३की किरत करके अुपजीवका तोरदा है।
४अुतसाह देखिआ।
५दरी जो पाटी होई सी।
६बैठिआ।

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