Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ६) ७६
८. ।बीबीवीरो जी ळ लिआणदा॥
७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ६ अगला अंसू>>९
दोहरा: इति सतिगुर इह बिधि करी, निकसे मंदिर छोरि।
अुत लशकर सभि झुक परो, जंग लोहगड़्ह घोर१ ॥१॥
चौपई: शलख तुफंगनि ब्रिंद चलाई।
बीचि लोहगड़ मारि मचाई।
इति अुति घेरि लीनि जबि गाढे।
दारुन जंग मचो रिस बाढे ॥२॥
अलप भीत चहु दिशि महि तांहि।
ओटा हित बचाव कुछ नांहि२।
केतिक चिर सो लरे जुझारे।
नेरे ढुकि लीनिसि सभि मारे ॥३॥
अंत समैण करवार प्रहारैण३।
हते अनेक कहां लग मारैण।
गिरे जूझ करि जंग मझारा।
इमि जबि लरति लोहगड़्ह मारा ॥४॥
अधिक अंधेरा द्रिशटि न परै।
जानो इहां न को अबि अरै।
सतिगुरु के महिलनि को गए।
कितिक सुधासर दिशि के अए ॥५॥
सूंनो हेरि प्रवेशे जाई।
कोशट भरे परे जु मिठाई।
हुते छुधातुर तुरक घनेरे।
लवपुरि अचो चढे जिस बेरे ॥६॥
ले ले करि बिसाल पकवान।हरखति होति लगे मिलि खानि।
अपरनि को बुलाइ ढिगि लेति।
खाना खाहु आपि तहि देति ॥७॥
गुरु नहि इहां भाजि करि गयो।
१भानक (मच गिआ)।
२बचाअु वासते कुछ नहीण सी।
३तलवार मारदे हन।