Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि २) ८३

८. ।चितौड़ गड़्ह छुज़टंा॥
७ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि २ अगला अंसू>> ९
दोहरा: अति हरखति खत को लिखति,
सतिगुर बच जिस भांति।
दयो सांढंी१ को तुरत,
कहो गमहुण दिन राति ॥१॥
चौपई: ले खत तबै अुताइल धायो।
निस दिन चलति जानु बदलायो२।
बहुर डाक महिण सुधि ततकाल।
पहुंचो जहिण अकबर महिपाल ॥२॥
कागद महिण जो लिख करि पठयो३।
शाहु खोल कै ततछिनि पठो४।
हरखमानुहुइ बहु मन मांहि।
सो जानो जो श्री मुख प्राहि ॥३॥
मनहुण क्रिपन कहूं पारसु पावा।
-गढि लैहौण- बिसवास५ अुपावा।
शरधा अधिक रिदै बिरधाई।
तहिण बैठे ही ग्रीव निवाई ॥४॥
कौतक६ रिद है खत लिखवायो।
तुम ने लिखो, सु हम लखि पायो।
श्री गुर जे इम बाक बखाना।
तुम दोनो रहियहु तिस थाना ॥५॥
बापी कर टूटन के हेत।
करहु जतन धन बुज़धि समेत।
जिमि अुदपान७ सिज़धि हुइ जाइ।
जथा शकति बहु करहु अुपाइ ॥६॥


१सांढंी सवार।
२सवारी बदलदा।
३भेजिआ सी।
४पड़्हिआ।
५भरोसा।
६प्रसंन।
७बावली।

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