Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ६) ८३
९. ।लोहगड़्ह युज़ध॥
८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ६ अगला अंसू>>१०
दोहरा: जिति किति करि परवार निज, अुचित जंग के होइ१।
भए निसंसै लरन को, रिसे बीर सभि कोइ२ ॥१॥
रसावल छंद: अुदै चंद होवा।
गुरू गैन जोवा३।
कछू भा प्रकाशा।
दिखो आस पासा ॥२॥
निदेसं बखानी४।
जिते सूर मानी५।
लरो जाइ आगे।
महां क्रोध पागे ॥३॥
गुरू के प्रचारे६।
चले बीर भारे।अहै नाम -भानू-।
चमूं नाथ जानू७ ॥४॥
लई सैन संगा।
धवाए तुरंगा।
तुफंगैण संभारी।
सु धौणसा धुकारी ॥५॥
बजी बंब दीहा८।
सुनी दूर जीहा९।
पहूचे अगारी।
रिसे सूर भारी ॥६॥
१भाव परिवार ळ जुज़ध भूमी तोण लांभे करके जंग करन लई जोग होए = बेफिकर होके लड़न जोगे हो
गए।
२सारे।
३अकाश देखिआ।
४आगिआ कही, हुकम कीता।
५जितने सूरमे बहादर हन।
६वंगारे होए।
७सैनापति जाणो।
८भारी डंका।
९दूर सुणी जाणदी है। (अ) जीवाण ळ।