Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १०) ८६
११. ।जज़से दी मौत। गौरे ळ १०१ स्राप। कीरतपुर पुज़जे॥
१०ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १० अगला अंसू>>१२
दोहरा: मारनि की मसलत करी,
घात बिलोकति फेर।
मिलहि इकाकी वहिर जबि,
हतहि तुपक देण गेर ॥१॥
चौपई: राखो लाइ निकटि१ नर कोई।
इक दिन तुरग अरूढो सोई।
गमनो वहिर इकाकी जबै।
सुध जसूस करि दीनसि तबै ॥२॥
अमुकी दिशा गयो चढि सोइ।बडो तुरंग एकलो होइ।
सुनि सुचेत हुइ चढे बरार।
दुइ तीनक जोधा असवार ॥३॥
जित दिशि गयो सुनो तित गए।
वहिर अुजाल बिलोकति भए।
फिरति इकाकी हटो सु आवति।
चंचल बाजी को चपलावति ॥४॥
इनहु तुफंग तार करि लीनि।
सने सने सामीपी कीनि।
निकटि होइ करि अूच बखाना।
रहु ठांढो नहि करहु पिआना ॥५॥
कही बात को फल अबि लैहो।
बनहु सुचेत जानि नहि पैहो।
देखि अचानक पहुंचे आइ।
ततछिन बनो न कोइ अुपाइ ॥६॥
छुटी तुफंग लगी बिच रिदे।
दड़ गिर परो भूम पर तदे।
करि संघार हटे असवार।
डेरे पहुंचे तूरन धारि ॥७॥
गौरसाल को खबर सुनाई।
१(जज़से दे) नेड़े।