Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ९२

गुर बिन समरथ अपर न लहीए।
तिस कलीधर के गुन कहीए ॥२९॥
अस तुरकन की जराण अुखारी।
कीन राज बहु पुशतनि१ भारी।
दीरघ२ दुरग३ मवास४ बडेरे।
होइ छार सो परहिण न हेरे ॥३०॥
भाई रामकुइर तुम लहो।
सरब रीति सोण समरथ अहो।
करहु लिखावनि गुर की कथा।
पेखी सुणी सुणावहु तथा** ॥३१॥
प्रथमै अशट गुरन की कथा।
करहु सुनावनि भे जग जथा।
जिमि चरिज़त्र५ बर अनिक प्रकारे।
करि नर सिज़ख समूह अुधारे ॥३२॥
पाछे संगति सिज़ख समाजू६।
पंथ खालसा सिंघन राजू।
पठिबे ते गुर को जसु जानैण।
सुमतिवंत बहु भांत बखानैण ॥३३॥
हुइ गुर सिज़खन की कज़लान।
अपर धरहिण शरधा सुनि कान।
सभिहिनि पर तुमरो अुपकार।
सुनि सुनि लेण गुरमति को धार ॥३४॥
सभि सिंघन की बिनती सुनि कै।
भाई रामकुइर शुभ गुनि कै।
साहिब सिंघ लिखारी लाइव।१पीड़्हीआण तक।
२वडे।
३किले।
४रज़खा दे थाअुण (अ) आकी।
*पा:-गुपत प्रगट जेतिक है जथा।
५भाव दसम गुरू जी दे स्रेशट चरिज़त्र कहो, किअुणकि रास १, अंसू ८, छंद ३९ विच नौ गुर की
सभि कथा बखानो किहा है।
६सारे।

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