Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि २) ९०

९. ।नवीसिंद ने गोणदवाल दी कथा सुणाई॥
८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि २ अगला अंसू>> १०
दोहरा: भई भोर अकबर कहो सभि अुमराअु बुलाइ।
इलम पठन वारे१ जिते अरु जो पीर कहाइण ॥१॥
चौपई: सरब भांति के नर बुलवाइ।
सभा बीच बैठो हरखाइ।
नवीसिंद२ को बाक बखाना।
अबहि सुनावो लिखि जो आना ॥२॥
सभिनि बिखै तबि पठो+ सुनायो।
जबहि शाहु दिज़ली ते धायो।
तबि को तिन३ संकलप अुठायो।
सभि तारी करि चहति खनायो४++ ॥३॥
जबहि शाहु पहुणचो तिस ठौर।
तोपन गोरे लगे चतौर।
तबि ही टक छित खनिबे केरा।
लाइ मजूर दए बिन देरा ॥४॥
इहु चतौर सर करते रहे।
अनिक जतन करि शज़त्र दहे।
तिनहुण खनाइ महिल चिनवायो।
सने सने नीचे अुतरायो ॥५॥
अरो आनि रोरन कर५ जबिहूं।
इत ते हम ढिग पहुणचे तबहूण।
कहो बाक -इसको कर** टूटै।
तबहि शाहु ते सो गड़तूटे+++- ॥६॥
इम सुनि हम लिखि भेजो इहां।


१विज़दा पड़्हन वाले, आलिम।
२मुनशी।
+पा:-पठि सु।
३भाव स्री गुरू अमरदास जी ने।
४पटवावंा (बावली साहिब)।
++पा:-बनायो।
५रोड़ां दा कड़।
**प:-कड़।
+++पा:-छूटै।

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