Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) ९३
सभि सतिगुर की कथा लिखाइव+ ॥३५॥
अपर सिंघ सुणिबे गन लागे।
श्री गुर के गुण सोण अनुरागे१।
जुग लोकन महिण दे कज़लान।
महा महातम सुणिबे कान ॥३६॥
सुत बित आदिक की सुखदाता।
कशट काटिबे दे ब्रहगाता।
अुर शरधा धरि सुनै सुनावै२।
गुर सहाइ ते मुकती पावै ॥३७॥
इति श्री गुर प्रताप सूरज ग्रिंथे प्रथम रासे कथा होण प्रसंग बरनन
नाम पंचमोण अंसू ॥५॥
+इह पोथी जो भाई गुरबखश सिंघ (रामकौर) जी ने रची ते साहिब सिंघ जी ने लिखी रमदास दे
खानदान विच रही। जदोण गुर प्रताप सूरज ग्रंथ लिखिआ जाण लगा तद कैणथल दे राजा अुदय
सिंघ जी ने महाराजापटिआला दी राहीण एह पोथी रमदास तोण मंगवाई। पटिआले ते रमदास दे
खानदानां दी रिशतेबंदी सी। महाराजा आला सिंघ जी दी पुज़त्री बीबी परधान, जो विज़दा दी बड़ी
कदरदान ते साधू ब्रिती वाली सी, भाई रामकौर जी दे पोत्रे भाई मोहर सिंघ जी नाल विआही
होई सी। भाई संतोख सिंघ जी ळ गुरू इतिहास दा पहिला खग़ाना (जो इक ाके वाणू जापदा है
कि होसी) रमदास तोण लभा सी, इसे करके सूरज प्रकाश दी कथा आप ने अुहनां दे मुखारबिंद तोण
लिखी है। इह पोथी मुड़के रमदास नहीण गई। जदोण कैणथल अंग्रेग़ी राज विच शामल कीता गिआ
है तां भाई संतोख सिंघ जी लिखदे हन कि अुथे लुट पई सी। शज़क हुंदा है कि महाराजा अुद
सिंघ दे महिलां दी लुट विच एह सामान पुसतकाल विचोण तबाह होए हन। श्रोत पैणदी है कि
अुतारा किते है, पर खोज करदिआण अजे साळ नहीण लभा। पर सारे दस गुराण दे ब्रितांत इस विच
बी नहीण होणे किअुणकि कवि जी कहिणदे हन कि किसे इक थावेण सारे हालात नहीण मिलदे, यथा:-
श्री गुर को इतिहास जगत महिण। रल मिल रहो एक थल सभ नहिण। ।देखो इसे अंसू दा अंक
५॥
१गुणां विच प्रेमी होए।
२(जे कोई) सुणे सुणावे।