Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ३) ९१
९. ।श्री हरिगोविंद जी ने सरप ळ अुधारिआ॥
८ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ३ अगला अंसू>>१०
दोहरा: इस प्रकार स्री सतिगुरू, संमत दै के होइ।
ग्राम वडाली क्रीड़ते१, पिख हरखति सभि कोइ ॥१॥
सैया: प्रिथीए पुन प्रेरनि कीनि हुतो२
इक दोस बिखै इक आइ सपैला३।
बड नाग४ तजो सभि ते दुर कै
सु प्रेवश भयो घर अंतरि भैला५।
नहि मात अुछंग टिकैण हरि गोविंदरूप बिलद अनद दे छैला६।
चित चाहति हैण तिस जीव७ अुधारनि,
है गुडली मिस खेलति खेला८ ॥२॥
शाम भुजंग९ फिरै खुड खोजति,
पावति है न छपै जिस मांही।
मात की डीठ लगी कित और,
सु दासनि कारज को बतराही१०।
जाइ के बेग समेत तबै
गहि लीनसि हाथ बिखै तन तांही११।
फुंकरतो डसिबे भजिबे हित१२
जोर करो पै छुटो कर नांही ॥३॥
सीस दबाइकै फेस दियो१३
बहु दीरघ सो अुलटो बलु खाए१।
१खेल करदे हन।
२प्रेरणा कीता होइआ सी।
३सज़प पालं वाला जोगी।
४फनीअर सप तोण मुराद है।
५भैदाइक।
६अनद देण वाले सुंदर रूप श्री हरिगोबिंद जी।
७भाव सज़प ळ।
८खेड दे बहाने खेडदे हन (सज़प नाल)।
९काला सज़प।
१०दासां ळ कंम दज़स रही सी।
११तिस (सज़प दा)।
१२डंग मारन ते भज़जं वासते फुंकारदा है।
१३फेह दिता।