Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ९) ९१
११. ।मुरादबखश नाल जंग॥
१०ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ९ अगला अंसू>>१२
दोहरा: दज़खं अरु गुजरात हित, करि बिचार मन माहि।
हुतो जोधपुर को न्रिपति, तिस बुलाइ करि पाहि ॥१॥
चौपई: सादर कहो देखि शुभ नैन।
भो जसवंत सिंघ! सुनि बैन।
करहु काज गुजरात सिधारहु।
जो अनुसारि न होइ संघारहु॥२॥
जोधा महां बली तूं अहैण।
रजपूतनि मैण बिदतो रहैण।
दज़खन दिश ते करि तकराई।
रोकहु सैन जि नौरंग आई ॥३॥
जे नौरंग रहि अपने देश।
जाहु मुरादबखश के पेश१।
तिस को लरि कै देहु निकासि।
कै गहि लावहु हमरे पास ॥४॥
इम कहि बहुत करी बखशीश।
हरखति हुइ करि दिज़ली ईश२।
गज अर तुरग दरब को दीनि।
जरे जवाहर कंचन भीन ॥५॥
महांराज को कीनि तिाब।
लिए भूप तबि साथ अदाब।
अपनो कासम खां अुमराव।
दीयो संग करि लरनि बनाव ॥६॥
तोप, तुपक, जंबूर, जंजैल।
चलैण संग कुंचर जनु सैल।
महां बाहनी ओरड़ चली।
मनहु लोह घट बड कलमली३ ॥७॥
प्रथम मालवे महि चलि गए।
१साम्हणे।
२दिज़ली दे मालक ने।
३मानोण कालीआण घटां बड़ीआण काहलीआण होईआण।