Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ४) ९४
१२. ।बरात॥
११ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ४ अगला अंसू>>१३
दोहरा: श्री अरजन के साथ तबि, मिलनि१ हेतु हितु धारि।
तार नराइं दास भा, गन वसतुनि संभारि ॥१॥
चौपई: जरे ग़ीन बाजी चपलावति।
गरे बिभूखन शोभ बढावति।
बसत्र रेशमी छादनि कीने।
गहे लगाम न थिरता लीने२ ॥२॥
ले बहु मोले ललित दुकूल।
श्री सतिगुरू के हुइ अनुकूल।अूपर धरि करि गन दीनारू३।
ले करि संग नरनि परवारू ॥३॥
बंधप सखा सहित समुदाअू।
चलो नराइं दास अगाअू।
श्री अरजन सनमुख तिह समो।
आइ मिलो करिबे चहि नमो ॥४॥
हुतो परोहति तिह समुझाइव।
भुजा पसारि मिलहु गर लाइव।
सम समधी इस समै बनते।
राअु रंक कैसे सु हुवंते ॥५॥
लौकिक बैदक रीति जु दोअू।
बाह आदि महि करि सभि कोअू।
लाज छोरि करीअहि बिवहारे।
समधी सोण मिलि भुजा पसारे ॥६॥
सुनति नराइं दास बखाना।
मैण कैसे करि इनहु समाना।
लोक प्रलोक सहाइक सामी।
तीन भवनि पति अंतरिजामी ॥७॥
इन के दास दास को दासा।
१मिलनी करन लई।
२लगाम फड़िआण बी जो नहीण टिकदे, भाव अति चंचल।
३मुहराण।