Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ८) ९५

१२. ।कुतब खां नाल सलाह॥
११ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ८ अगला अंसू>>१३
दोहरा: पैणद चचा को सुत हुतो, कुतब खान बुधिवान।
तरकति बोलो भ्रात सोण, बिज़प्रै१ जानि महान ॥१॥
निशानी छंद: बाज बसन बशश करे, गर निज पुन लीने*।
बड पुरखनि के बहु मते, कै सिहु रिस कीने।
अुज़तम वसतू तोहि दे, बहु होति प्रसंना।
प्रतिपारो करि प्रेम को, सभि दारिदहंना ॥२॥
दई वसतु अपनी लई, तैण कोण रिस धारी?
लरनि हेतु कहु कौन है, जिस ते दुख भारी।
जिनहु हाथ ते तन वधो, सुख लहे घनेरे।
भयो पुकारू तिनहु पर, करि निद बडेरे ॥३॥
निमकहरामी नाम इम+, मरि दोग़क जावैण।
बैठहि अुमरावन बिखै, अपजस को पावैण।
बनहि क्रितघनी लवन अचि, अुचित न इहु तेरे।
किधौण दिवस पहुचे बुरे, जम को घर हेरेण२ ॥४॥
गुर ऐसो घट का लखो, जो रण ते हारे।
बडो बहादुर जंग मैण, अरि ब्रिंदनि मारै।
किम जानति अनजान भा, भावी मन प्रेरा।
जियनि चहति शरनी परहु, मानहु, हित तेरा३ ॥५॥
सुनति भ्रात की बात को, पैणदे दुख पावा।
करो भलो, मानो बुरो, भावी बिचलावा।
कहो कि तेरे अुदर महि, गुर केर कराहू४।
सो बोलति -मिटि दीन ते-, जीना मन मांहू५ ॥६॥
मारो कै बंधो चहौण, जिस को करि दावा।निम्रि बनौण अबि अज़ग्र तिस, इहु सीख सिखावा।

१अुलटी गल, माड़ी गल।
*देखो अज़गे अंक १५ दी हेठली टूक।
+पा:-इस।
२भाव मौत लभदा हैण।
३(इस विच) तेरा भला है।
४भाव कड़ाह।
५अुह (कड़ाह) बोलदा है (कि मैण) दीन तोण हट जावाण, इह गज़ल मैण मन विच जाणी है। (अ) तैळ
दीन तोण हटाके अुह कड़ाह बोलदा है, मैण समझ लई है।

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