Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि २) ९७
१०. ।अकबर ने गुरू जी ळ ग्राम भेटा कीते॥
९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि २ अगला अंसू>> ११
दोहरा: सुनि कै अकबर कथा को रहो रिदै बिसमाइ।
नवीसिंद सोण कहति भा गुर पूरन सुखदाइ++ ॥१॥
चौपई: केतिक दिन महिण लवपुरि चलि हैण।
तहां जाइ सतिगुर को मिलि हैण।
मग महिण आवहि जबि असथान।
तहिण मुझ को करि देहु बखान ॥२॥
इम कहि अकबर रहि दिन कोइ।
लवपुरि दिस गमनो सुख जोइ।
सने सने डेरे करि कूच।
तीर बिपासा आनि पहूच ॥३॥
अुलणघि पार जबि सिवर करायो।
शाहु आइ बैठो हुलसायो।
नवीसिंद सभि कथा सिमरि कै।
करी जनावनि सकल अुचरि कै ॥४॥
सुनति शाहु हरखो अुर मांही।
चलन तार भा सतिगुर पाही।
लई अुपाइन हीरा मोती।
वसत्र बिभूखन जोति अुदोती ॥५॥
निज डेरे ते पाइन१ चलो।
सतिगुर की महिमा मन मिलो।
संगपठान मुल समुदाया।
बसत्र बिभूखन ब्रिंद सुहाया ॥६॥
गोइंदवाल बरो जबि आइ।
तजे अुपानय२ नगे पाइ।
शरधा को बधाइ अुर मांही।
-जिस ते गुर मो पर हरखाहीण- ॥७॥
दिपत राज लछन सभि अंगु।
++पा-सुखथाइ।
१पैदल।
२जुज़ती लाहके।