Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १२) ९८
१२. ।दशमेश अवतार॥
११ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १२ अगला अंसू>>१३
सैया: गन मंगल के गुर मंगल रूप,
महां अुतसाहनि के अुतसाहू।
सभि तेजनि के अति तेज दिपैण,
सभि ओजन ओज, गरूरनि गाहू१।
शुभ आदि म्रिजाद टिकावनि को,
बिगसावनि संतनि को, रिपु दाहू।
तुरकानि तरू जर नाशनि को२
अवतार अुदार लयो जग मांहू ॥१॥
सरदूलकि तूल अभूल भए
प्रतिकूल नदी गिर राजनि को३।
हिंदवाइन तीरथ पावन को
थिरतावन को अघ मांजन को४।
सरबोतम खालसा पंथ स तेज
अमेज है आप ही साजन को५।
कवि सिंघ कहै अवितार भयो
हम जैसे रीब निवाजन को६ ॥२॥
सभि निदक मोद कमोदनि को बन७,
दंभ अुलूक दुरे समुदाए८।
भगती अति आतप को बिसतारनि
तारन से गरबी न दिसाए९।
१हंकारीआण ळ गाहुण वाले।
२तुरकाण (रूपी) ब्रिज़छ दी जड़्ह नाश करन ळ।
३पहाड़ी राजिआण दी विरोधता रूपी जो नदी सी, अुस विच शेर वाणू अचक (सिज़धे) टूरे। भाव इह
कि अुन्हां दे रौण रु विच वहि टुरन दी भुज़ल नहीण कीती, निरोल सज़च ते अझुक टिक के सिज़धे टुरी
गए जिवेण शेर नदी दे वेग दी प्रतिकूलता ळ चीर के सिज़धा जाणदा है।
४हिंदूआण रूपी (या दे) तीरथां दे पविज़त्र करने ळ फिर हिंदूआण दी सथिती करन ळ ते पाप नाश
करन ळ।
५आप विच मिलके साजं लई भाव इह कि आप निराले रहि के पंथ नहीण साजिआ पंथ साज के
आप अंम्रित छक के खालसा दे विच मिले।
६साडे वरगे गरीबाण दे वडिआवंे ळ।७सारे निदकाण रूपी कमुदनीआण दे बन ळ मुंद दिज़ता।
८दंभ रूपी अुज़लू छिप गए।
९फिर भगती रूपी धुज़प दे फैलाअुण विच तारिआण वत गरबी (लोक निगाह ना आए)