Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ६) ९९

११. ।नदा मिरग़ाबेग युज़ध॥१०ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ६ अगला अंसू>>१२
दोहरा: कहि गुरु पैणदे खान को तुरक सैन समुदाइ।
होहि निबेरो हते ते, इस बिधि कीजै दाइ:- ॥१॥
भुजंग प्रयात छंद: रहे संग जोधा सु थोरे हमारे।
सबै और सैना सु लीजै संगारे।
दिशा दज़छनी मैण चले आप जावो।
तुफंगैण करो तारि तोड़े मिलावो ॥१॥
परो जंग थान तहां आप जावैण।
रिपुं सामुहे मारि गाढी मचावैण।
मलेछी चमू आइ मंडै लराई।
बधैण खेत आगे धरैण पाइ धाई ॥२॥
तबै खान पैणदा! परो धाइ ऐसे।
बटेरा पिखे ते गहे बाज जैसे।
धरैण त्रास भाजैण कराचोल१ मारो।
लथेरो पथेरो२ भटं काटि डारो ॥३॥
करो मंत्र ऐसे गुरू धीर चाले।
बजै ब्रिंद धौणसानि नादं बिसाले।तुफंगैण करी तारि तोड़े अुठाए।
कसी ठोकि गोरी पलीता मिलाए ॥४॥
किने लीनि नेग़ा कि सांगं संभारे।
किनू चांप३ मैण बान जेहं सचारे४।
गुरू तुंद ताग़ी५ कियो आप चाले।
मलेछानि पै कोप जागो बिसाले ॥५॥
करो चांप३ सज़जी६ कठोरं कराला।
धरे तीर तीखे निखंगै सभाला।
करी ढूक बीरानि पै मार माची।


१तलवार।
२लेथू पेथू करो।
३धनुख।
४चिज़ले विच जोड़िआ।
५तेग़ घोड़ा।
६सज़जे पासे।

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