Sri Gur Pratap Suraj Granth

Displaying Page 89 of 626 from Volume 1

स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) १०४

खीवी१ सती भारजा होई।
भए आतमज तिस ते दोई ॥११॥
नाम दासु*, अरु दाता+ दूवा२++।
जिन के रिदै गिान दिढ हूवा।
दादश बरख टिके गुर गादी३।
खशट मास नौ दिन अहिलादी४ ॥१२॥
सोलिहि सत नौ५ संमत और।
चौथ चेत सुदि नर सिरमौर६।
तन कअु तजि बैकुंठ सिधारे।
श्री गुर अमर तखत बैठारे ॥१३॥
दोहरा: ग्राम खडूर कुविंद७ घर, तहिण सिसकारी८ देहि।
अब लौ खरो करीर तरु, किलक लगो पग जेह९ ॥१४॥
चौपई: बासरके इक ग्राम सु नामू।
तेजो मज़ल बसहि करि धामू।
रूप कौर दारा१० तिस++* केरी।
तपसा११ कीनसि जिनहुण बडेरी ॥१५॥
जिस को फल बिदतो अस आइ।
जनमो सुत शुभ गुन समुदाइ।श्री गुर अमरदास बर नामू।


१नाम है गुरू अंगद जी दे महिलां जी दा।
*पा:-दासू।
+पा:-दातू।
२दूजा।
++श्री गुरू अंगद देव जी दे घर इक सपुज़त्री बी सी, इस भगती भावना वाली पविज़त्रातमा दा
नाम बीबी अमरो सी, देखो इसे रास दा अंसू १५, अंक १।
३भाव गुरू अंगद देव जी।
४अनद देण वाले।
५-१६०९।
६श्रोमणी।
७जुलाहे दा।
८दाह कीता।
९जेहड़ा किज़ला श्री गुरू अमरदास जी दे चरनां ळ लगा सी।
१०सुपतनी।
++* पा:-जिन।
११तपज़सा।

Displaying Page 89 of 626 from Volume 1