Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरजग्रंथ (राशि ७) १०२
१०. ।वडाली सूर मारिआ॥
९ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ७ अगला अंसू>>११
दोहरा: धारो गरभ सपुज़त्र को, बधो सु अधिक अनद।
श्री गुरदिज़ता चित विखै, चितवो -अबि हुइ नद ॥१॥
चौपई: इस नमिज़त करि नगर बसायहु।
गुरु कीरति पुरि नाम अलायहु१।
मन महि इही मनोरथ राखा।
इसी पुज़त्र हित रचि पुरि काणखा२*- ॥२॥
सुख के सहत बसे, दिन टारे।
खिलहि अखेर होहि असवारे।
सुभट संग चढि बिचरहि बाहर।
दिन प्रति बसो नगर भा ग़ाहर ॥३॥
अुत श्री हरिगोविंद की गाथा।
सुनहु संत सिख प्रीती साथा।
सुभटन ब्रिंद सकेलनि करैण।
आयुध विज़दा महि हित धरैण ॥४॥
छोरहि बान तुफंगन भरि भरि।
हतहि निशानौण आगै धरि धरि।
कबहु अखेर ब्रिज़त को करैण।
म्रिगन अुधारैण प्रान जि हरैण ॥५॥सिख संगति चहुं दिशि ते आवहि।
मन बाणछति गुर ते बर पावहि।
कीरति किधौण मालती फूली।
पंकति किधौण मरालन भूली ॥६॥
किधौण चंद्रिका जगत बिथारी।
पारद सम अुचरहि नर नारी।
चहुदिशि महि जहि कहां सुहेली३।
१गुरकीरत पुर नाम धरिआ भाव गुर दे जस वाला शहिर।
२इज़छा धारके।
*भाव, बाबा जी ळ होणहार दा पता सी कि गुर गादी दा मालिक हुण इथे अुन्हां दे ग्रिह जनमेगा।
(अ) पिता गुरू जी ने इसे पुज़त्र वासते नगर बनाअुण दी इज़छा कीती सी। देखो अंसू ९ दा अंक
१९।
३सुखदाइक।