Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ९) १०४
१३. ।शाहजहां नग़रबंद। दारा नसिआ॥१२ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ९ अगला अंसू>>१४
दोहरा: मचो जंग भीखन महां,
तबि हांडे राठौर१।
परे नुरंगे सैन पर,
रौर मचाइव दौर ॥१॥
चौपई: रामसिंघ आदिक जे हांडे।
भिरे जुज़ध जनु रन थंभ गाडे।
कतल करति नौरंग की सैना।
चली सरोही बाढ सु पैना२ ॥२॥
न्रिभै बीर डोले रण मांहू।
खेलहि गन चाचर३ चित चाहू।
तुपकैण चलति रुचिर पिचकारी।
श्रोंति भिगति रंग बहु डारी ॥३॥
चलहि जबूरनि के गन गोरे।
सो कुमकुमेण४ लरति* दुहु ओरे।
मार मार करि गीतनि गावहि।
बादित बाजति अुमग बढावहि ॥४॥
तबि नुरंग को लशकर भागा।
नहीण रठौरनि को लिय आगा।
कातुर होइ पीठ दिखराई।
तमक ते की५ सहि न सकाई ॥५॥
छोर लाज भाजे जबि हेरे।
नौरंग पहुंचि तोप गन नेरे।
भरि बरूद छररे छुटवाए।
दई दलेरी सु दिल बधाए ॥६॥
१राजपूतां दी जाति है।
२तिज़खी धार वाली।
३हौली।
४लाख या कागत दे गुलालनाल भरे खोल
।अ: कुमकुमा॥
*पा:-मेलति।
५तेग दी जोश भरी मार।