Sri Gur Pratap Suraj Granth

Displaying Page 93 of 626 from Volume 1

स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) १०८

श्री अरजन, प्रिथीआ सु बडेरे।
त्रितिये महांदेव जिह नाम।
महां गंभीर१ धीर अभिराम ॥३४॥
श्री गुर रामदास जग भायो।
गुन अनेक जुति तखत सुहायो।
संमत खशट इकादश मास।
दिवस अशट दस स्री सुख रास* ॥३५॥
गुरता गादी पर थिति रहे।
जिन ते अनिक दास गति लहे।
सोलह सत अठतीसा साल।
भादोण सुदी तीज गुर दाल ॥३६॥
तजि सरीर बैकुंठ पधारे।
श्री अरजन जी तखत बिठारे।
पुन सोढिनि कुल महिण गुरिआई।
होति भई गुर दसमे ताईण ॥३७॥
पंचम पातिशाह जबि भए।
ताल सुधासर तबि निरमए२।
बीड़ ग्रंथ साहिब की होई।
जिस पठि कै३ गति लहि सभि कोई ॥३८॥
गंगा नाम भारजाबाही।
साधी४ के गुन सभि जिस मांही।
नदन अुपजो इक कुल चंद।
बड धनुधरि५ श्री हरि गोबिंद ॥३९॥
धीर धरम धज श्री गुर अरजन।
बिसतीरति६ जित कित जसु अरजुन७।


१निरहज़ल।
*पा:-स्री मख रास।
२अंम्रितसर तदोण रचिआ।
३पड़्हके।
४पतिज़ब्रता।
५धनुख धारी।
६फैलिआ।
७अुज़जल।

Displaying Page 93 of 626 from Volume 1