Sri Gur Pratap Suraj Granth

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स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) १०९

जग करतज़ब करे शुभ भारे।
भगति बिथारि१ अनिक जन तारे ॥४०॥
बिंसत चतुर बरख नव मास।
इक दिन अूपर श्री सुखरास२।
गुरता लहि सरीर कअु धारा।
पुनहि चहो सचखंड सिधारा ॥४१॥
दोहरा: खोड़स सत त्रेसठ३ अधिक,
जेशट४ मास महान।
सुदी चौथ दिन महिण गुरू,
कीन बिकुंठ पयान ॥४२॥
इत श्री गुर प्रताप सूरज ग्रिंथे प्रथम रासे श्री गुरू परनाली५ प्रसंग
बरनन नाम सपतमोण अंसू ॥७॥


१विसतीरन करके।
२सुखां दीखान।
३-१६६३।
४जेठ।
५शजरा, बंसावली।

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