Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १०) १०७
१४. ।गौरे दा तुरकाण नाल युज़ध॥
१३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि १० अगला अंसू>>१५
दोहरा: शलख तुफंगनि की छुटी,
लगे तुरक तन घाइ।
गिरे तुरंगनि ते तुरत,
जे अति हैण अगुवाइ१ ॥१॥
भुजंग छंद: लियो घेर आगो खरो तांहि ठौरे।
सभै रोकि सज़त्र, बडे बीर गौरे।
भयो दूर को पंथ चालयो बहीरा।गुरू ओर को, छोरि चिंता, सधीरा२ ॥२॥
रिपू दौरि, जाणही दिशा को चलते३।
तितै घेरि आगै तुफंगैण हनते४।
नहीण जानि दीने बहीरं पिछारी।
रचो जंग भीमं रिसे शसत्र धारी ॥३॥
करे तेज ताजी धरे हाथ नेजे।
परोए परे* सो जमंधाम भेजे५।
चलैण तीर तीखे धसैण देह फोरेण।
गिरे बीर भूमैण, फिरैण छूछ घोरे ॥४॥
कड़ाकाड़ बंदूक छुज़टी कड़ज़कैण।
भए घाव जोधानि तेगे सड़ज़कैण।
मिलैण बीर, बाहैण कटैण अंग डारैण।
करैण बीर हेला सु मारं पुकारैण ॥५॥
जबै मार ऐसी करी सूर गोरे।
हटे मूंड फूटे* पिखे तांहि ठौरे।
परे घाव खै के किते पानि जाचेण।
भकाभज़क लोहू चलै धूल राचे ॥६॥
१मूहरले।
२वहीर (तुरक दल तोण) दूर हो के गुरू जी दी तरफ वाले रसते ते चज़ल पिआ, चिंता छज़ड के,धीरज नाल।
३(जिस) तरफ ळ (वहीर) जाणदा सी।
४(गौरे हुरीण) बंदूकाण मारदे।
*पा:-बरे = वड़िआण वाणू।
५(जो) परोए गए......। (अ) परोके परे (दूर सज़टे ते) जम धाम ळ भेजे।
*पा:-मूढ खोटे।