Sri Gur Pratap Suraj Granth

Displaying Page 94 of 405 from Volume 8

स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ८) १०७

१४. ।काले खां ने बीड़ा चुज़किआ॥१३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ८ अगला अंसू>>१५
दोहरा: देखि दूर ते शाहु को, निव निव करति सलाम।
अज़ग्र जाइ ठांढो भयो, जिह ठां सभा तमाम ॥१॥
चौपई: सुंदर डील बिलद निहारा।
बाहु बिसाल बडे बलवारा।
हग़रत मुदति भनी तबि बानी।
तैण किम कीनि पुकार महानी? ॥२॥
का तुम छीनो कै किन मारा?
है अस कौन दियो दुखभारा?
सुनि पैणदे कर जोरि बखाना।
हरि गुविंद मम शज़त्र महाना ॥३॥
करति चाकरी रिपु बहु हने।
ठांनति जंग कीनि बल घने।
मम बाहन के होइ अलब।
तुमरे लशकर हने कदंब ॥४॥
बडी बडी मैण जोखौण खाइ१।
लई फते बहु जसु अुपजाइ।
तिस को इह इनामु मुझ दीनो।
आयुध बसत्र छीन करि लीनो ॥५॥
जाट गवारनि ते मरिवायो।
तुमरो त्रास तनक नहि पायो।
जबि रावर की दई दुहाई।
सुनि बहुती तबि मार कराई ॥६॥
जितिक चमूं गुर के संग रहै।
मम सम अपर न बल मैण अहै।
सुनति कुतबखां कहति बनाइ।
इस को नाम रहो बिदताइ॥७॥
रण महि प्राक्रम करे बडेरे।
खड़ग खतंगनि हते घनेरे।
अबि हग़ूर! इस डील निहारहु।


१खतरे विच पै के ।पं: जोखोण = बड़े कशट या विपता दे होन दी संभावना, खतरा॥

Displaying Page 94 of 405 from Volume 8