Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि १) १११
चेत पंचमी शुदी क्रिपाल।
सज़चखंड को तबहि पधारे।
श्री हरिखाइ तखत बैठारे ॥६॥
श्री बाबा गुरदिज़ता रूप१।
बाही नेती२++ नाम अनूप।
दै सुत इन ते अुतपति होए।
श्री हरिराइ, धीर मल दोए ॥७॥
टिको पितामे३ ते गुर पोता।
दीन दुनी थणभि भार खलोता।
कीरत पुरि महिण जनमु भयो है।
श्री हरिराइ गुर सु थियो है ॥८॥
बहु दासन को करि बखशीश।
हुते रंक४ जे भए महीश५।
बाही महिला अशट*+ महानी।
किशन कुइर, कोटि कज़लानी ॥९॥
तोखी, अपर अनोखी नीकी६।
राम कुइर*, अरु नाम लडीकी।
सपतमि है श्री प्रेम कुमारी।अशटम चंद कुइर सुखकारी+ ॥१०॥
दै सुत श्री हरिराइ अुपाए।
रामराइ हरक्रिशन सुहाए।
जुग७ जनमे कीरतिपुरि मांही।
१रूपवान = सुंदर।
२नाम है बीबी दा।
++ पा:-नती।
३दादे तोण।
४कंगाल।
५राजे।
*+ इह गेंती बी लत है, विशेश देखो श्री गुरू हरिराइ जी दे प्रसंग विच रास १० अंसू १३
अंक ९ ते रास ४ अंसू २७ अंक ४६ दी हेठली टूक।
६स्रेशट।
*पा:-चंद कुइर, जो अशुध जापदा है।
+ पा:-सुखिआरी।
७दोवेण।