Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ६) १०९
१२. ।तोता, तिलोका, अनता, निहालू बज़ध॥
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दोहरा: दुहिदिशि ते गुर दल परो, भई तुफंगनि मारि।
गिरे बीर संग्राम महि, भागे कितिक सुमारि१ ॥१॥
चौपई: श्री हरि गोविंद के बड जोधा।
करी लथेर पथेर सु क्रोधा।
अुज़दो, दाअू, दोइ हरी के।
अमीआण, हेहर मुज़ख अनी के२॥२॥
रिंधावा मुहरू बड बीर।
मोहन अपर गुपाला धीर।
जैता, तोता, किशन, निहालू।
नाम पिरागा सूर बिसालू ॥३॥
तखतू, दयाल, तिलोका, धीरा।
देवी दास, अनता, हीरा।
पैड़ा आदिक कौन गनीजहि।
गुर सैना के मुज़खि जनीजहि ॥४॥
जाती मलक बिज़प्र बडि जोधा।
सोढी बंस सभिनि को प्रोधा३।
जेठा, बिधीचंद बलवंता।
पैणदे खान बीर अतियंता ॥५॥
बाबक नाम रबाबी पास*।
आयुध बिज़दा को अज़भास।
इह तिह समैण भए रंग रज़ते।
चली क्रिपानै रिस भरि तज़ते ॥६॥
अुत लुतफुज़लहि खान४ बहादर।
शाहजहां राखहि जिस आदर।
पुन इसमाइल खान चमूंपति।
जो जानति है जुज़ध करनि अति ॥७॥
१ग़खमी होके।
२सैनां दे मुखी।
३प्रोहित।
*गुरू जी दी करनी वल तज़को प्रोहतां, ब्राहमणां ते रबाबीआण तज़क ळ यज़धे बणा लिआ।
४अुस तरफ लुतफ अुज़ला खान।