Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (राशि ९) १११
१४. ।दारे दा शौक नामा॥
१३ॴॴपिछला अंसू ततकरा रासि ९ अगला अंसू>>१५
दोहरा: प्रथमै दारशकोह को,
देअुण प्रसंग सुनाइ।
लिखो पठो त सुध लई,
जिस बिधि श्री हरि राइ ॥१॥
चौपई: दारशकोह महां सतिसंगी।
परमेशुर पद प्रीति अुमंगी।
मीआण मीरपीर इक पूरो।
आतमगान लहे मन रूरो ॥२॥
तिस को खादम१ दारशकोहु।
ब्रहम गान अभिलाखी होहु।
करी पीर ने क्रिपा सुनाइव।
रूप आतमा केरि जनाइव ॥३॥
पतिशाहित महि रीति फकीरी।
मिहर पीर की मीरी पीरी।
करहि बिचारन निस दिन आतम।
मिलि संतनि खोजहि परमातम ॥४॥
जहि कहि अुज़तम सुनि कै संत।
करहि मेल, चरचा भगवंत।
पित ने कहि बहु बार सुनावा।
बरिआई२ करि तखत बिठावा ॥५॥
तअू मेल संतनि सोण राखै।
ब्रहमगान निशचै अभिलाखै।
मीआण मीर निकटि इक दिन मैण।
बैठो हुतो प्रेम बहु मन मैण ॥६॥
अपर संत केतिक तहि बैसे।
चरचा करहि गान लरि जैसे।
करी बारता काहूं संत।
श्री नानक सतिगुर भगवंत ॥७॥
१मुरीद।
२जोरो जोरी।