Sri Gur Pratap Suraj Granth
स्री गुर प्रताप सूरज ग्रंथ (रुति ५) १११
१३. ।बिशंभर दास अुजैनी॥
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दोहरा: *पंथ चलो तबि बानीआ, हरिगुपाल जिस नाइ।गुर ते लयो कराहु कुछ, बंधि गांठ महि जाइ ॥१॥
इक दिन खोलो देखि कै, जो कराहु सो मास१।
देखति ही लजा करी, धरी बंधि गठतास२ ॥२॥
पिता आपणे पर खिझो, -भलो बतायो देव।
मास खाइ बिनसै धरम, का कीना सत+ सेव३- ॥३॥
चौपई: निज पुरि के मग गमनोण गयो।
एक नगर बड आवित भयो।
तहां देखि कीनसि बिअुहार।
मुकता पंना परखि अुदार ॥४॥
करि खरीद पुन आगे चाला।
पुन पुरि पाली++ आइ बिसाला।
तिस महि बेच दिये सो रतन।
पायो लाभ महां करि जतन ॥५॥
जमा कीन धन तीन हग़ारा।
निज घरि पहुचो करि बिअुहारा।
पित सिअुण मिलो जाइ सुख पायो।
दरसो मैण सतिगुरू बतायो ॥६॥
सरब दरब कर गरब दिखायो४।
करो बणज मैण मग महि लायो।
निज सुत पिखो बिशंभर दास।
बूझो सभि ब्रितंत तिस पास ॥७॥
किम सतिगुर ते ले पतियारा५?
*इह सौ साखी दी ७५वीण साखी है।
१कड़ाह मास (नग़र आइआ)।
२गंढ बंन्हके तिसदी (आपणे पास) रज़खी।
+पा:-तिह।३कीह सत दी सेवा कीती (पिता ने)। (अ) किहो जिहे सत पुरख ळ सेविआ है (पिता ने?)।
++पाली इक नगर है जोधपुर तोण अज़गे ते अुजैन तोण दो ढाई सौ मील अुरे है।
४सारा धन हंकार करके विखाइआ (पिता ळ)।
पा:-लखो।
५प्रीखिआ।