Sri Nanak Prakash

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५७. गुरचरण मंगल मज़के जाणा॥

{१८ टापूआण दे राजे} ॥६..॥
{तुसीण कौं हो? दा अुतर} ॥२८..॥
{बहावलदीन} ॥३१॥
{तिंन प्रकार दा पड़्हना} ॥३३..॥
दोहरा: श्री गुर चरन तरोवरं, सीतल सुंदर छाइ
म्रिग मन बिशयातप तपो है, सुखि तहां टिकाइ ॥१॥
तरोवरं=कलप ब्रिज़छ संस: तरुवरु:॥
बिशयातप=बिखयआतप संस: विय=विशे॥ आतप=धुज़प विशयां दी धुज़प॥
अरथ: श्री गुरू जी दे चरन कलप ब्रिज़छ (समान) हन, (जिस दी) छाया ठढी ते
सुहणी है, विशय (रूपी) धुज़प (नाल) तपिआ होया म्रिग (रूपी) मन (जे
अुथे इसदी छावेण) टिक जावे तां सुखी हो जाणदा है
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: सुनहु गुरू अंगद जी कथा
भई जथा अुचरोण पुन तथाकवलनैन को दीनो गाना
आतम अंतर वहिर दिखाना ॥२॥
जोण अकाश पूरन सभि थाईण
अस दिखाइ करि चले गुसाईण
मंद मंद मग सुंदर चाली
चले जाति गति देण जु सुखाली१ ॥३॥
पंथ२ बिखै बोलो मरदाना
इह थो राजन राज महाना
जाणहि पास ऐशरज बिसाला
मानहिण आन सरब भूपाला ॥४॥
अहे अठारहिण टापू जेते
तिन महिण राज करहिण न्रिप तेते
सभिहिनि के मुझ नाम सुनावो
देश अपर चलि बहुर दिखावो ॥५॥
सुनि करि बोले दीन दयाला
प्रिथम हुतो -चखकौल१- बिसाला२


१सुखज़ली मुकती देण हारे
२राह

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