Sri Nanak Prakash
१४०९
९. शारदा मंगल ब्रिज, अयुज़धा, ते काणशी दे लोकाण प्रति अुपदेश॥
८ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध - ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ१०
{गुरू जी ब्रिज पहुंचे} ॥३..॥
{ब्रिज परबत दी पौराणक कथा} ॥६..॥
{गुरू जीअयुज़धा विज़च} ॥४७॥
{तिंन प्रकार दे गुरू} ॥५६..॥
{गुरू जी काणशी विज़च} ॥७०..॥
{काणशी दे पंडतां ळ अुपदेश} ॥७५..॥
{काणशी दे लोकाण ळ अुपदेश}
{दो किसम दा पड़्हना} ॥७८..॥
दोहरा: जगति जोति जगमगति जुत, नित अभिमत चित देति
सूल हरी मंगल करी, जै जै क्रिपा निकेत ॥१॥
जगति जोति=जागदी है जोत इस दी, इस दा प्रकाश पै रिहा है, जो जी
रही है
जगमगति=चमकंा जिस दा जगमगा रिहा है, भाव तेज जिस दा दमक रिहा
है
जुत=चमकंा संस: दुत=चमकंा॥
अभिमत=चाही होई, मंगी होई संस: अभिमत॥
अरथ: जागदी जोत ते जगमगाअुणदा है चमकंा (जिस दा, जो) सदा चित दी चाही
(मनो कामना) देणदी है, (जो) पीड़ा दूर करन वाली, मंगल करन वाली ते
क्रिपा दा घर है (तैळ) जै जै कार होवे
भाव: पहिले चरण विच तेज दूजे विच शांति वाले गुण कज़ठे कीते हन शारदा ते
चंडी इको रूप विच वरणन होए हन, विशेश वेखो अगले अधाय दा मंगल
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: स्री फेरू सुत! सुनीए कथापिखी जथा मैण कथि होण तथा
आगै गमन कीन गुनखानी
नरन अुधारन जिन मन बानी ॥२॥
भुजंग छंद: चलसे जाति मो संगि बोले क्रिपाला {गुरू जी ब्रिज पहुंचे}
अबै देखीए कान्ह१ की ब्रिज़ज शाला२
जहां आवतारं धरो कंश नासू३
कियो है कलोल जशोधा४ अवासू ॥३॥
१क्रिशन
२ब्रिज असथान
३कंस दे नाशक ने
४क्रिशन जी दी माता दा नाम