Sri Nanak Prakash

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६५. गुर चरण मंगल काक भसुंड: दज़ता त्रेय॥

{काक भसुंड} ॥२..॥
{पंज प्रकार दे स्रोते} ॥१८..॥
{दज़ता त्रेय} ॥५८..॥
दोहरा: रिदै पदारथ चाहिण जे, सतिगुरु चरन सरेअु
जीवति पावहु सरब सुख, अंत मुकति को लेअु ॥१॥
अरथ: जे रिदे (विच) पदारथ (बी) चाहेण (तां) सतिगुरू दे चरन स्रेवन कर,
(चरन सेवं नाल) जीअुणदिआण सारे सुख प्रापत होणगे (अते) अंत ळ मुकत
ळ लओगे
भाव: चरणां दी अराधना जे पदारथ लई कीती तां ओह शैतां लभे ही गी जिस
पर मन द्रिड़ ते एकाग्र कीता है, पर मुकती भी मिलेगी इह गल कवी जी
ने दज़सी है पर कारण नहीण दज़सिआ, कारण एह है कि चरणा दा धान
अपणे सुभावक असर विच मुकती दाता है सतिगुर चरणां दे प्रेमी ते
धानी अुथोण अुहो शै प्रापत करदे हन जो अुथे सुते सिज़ध है, पर अपणे मन
दी भावना पदारथ वल होण करके अुथोण मनोकामना बी मिलदी है, पर चरणां
दा सुते सुभाव जो मुकती दान करना है अुह भी नालो नाल अपणा असर
करदा जाएगा, इथोण तज़क कि धानी ळ अुज़ची मति दान करेगा अर ओह
मुकति मारग विच परवेश कर जाएगा
स्री बाला संधुरु वाच ॥
दोहरा: अज़ग्रज गमने श्री गुरू, गए एक असथान {काक भसुंड}
काक भसुंड बैठो जहां, पंखन* बिखे महान ॥२॥
चौपई: बहु बिहंग हैण अनगन जहिणवा
काक भसुंड बिराजै तहिणवा
बैसो आप सभिनि के मांही
अुचरति कथा प्रेम अुर जाणही२ ॥३॥


*अकाशी ब्रिति वाले तिआगी ळबिहंगम (पंछी) किहा जाणदा है काक भसुंड इक किसे तिआगी
दा नाम है काक भसुंड ळ चिरजीवी मंनिआ गिआ है इस दी कथा इस अधाय विच दिज़ती
है पौराणक प्रसंग है, कि इक भगती भाव वाले ब्रहमण ळ लोमस ने सराप दिज़ता सी काण हो जाण
दा दो अड इशट देवाण दे पूजकाण विच विरोध नहीण चाहीदा इह इस विच अुपदेश है ठीक
ऐअुण जापदा है इस नाम दा कोई वडी अुमर वाला तागी ते भगत पुरख सतिगुर जी ळ एथे
मिलिआ है जनम साखी वाले ने पौराणक कथा नाल जोड़ दिज़ती है ते कवि जी ने ओहो कविता विच
अनुवाद कर दिज़ती है, शाइद पौराणक कथा विच जो तपज़सीआण दे क्रोध ते स्राप देण दा महान
अवगुण सी, अुह दिखाअुण दा प्रयोजन है, अुस दे मुकाबले सतिगुर जी कैसे दिआल मूरती ते
बखशिंद हन, इह गज़ल सपशट कीती है वडी अुमरा बाबत पड़्हो टूक अधाय ६५ अंक ५८ दी
२जिस दे

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