Sri Nanak Prakash

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७०. गुर चरण मंगल वैराह अवतार॥

दोहरा: श्री गुर पग करि सिपर सर*,
बान सि सरब बिकार
करि तिह ओट बचाइ कै,
कहौण कथा सुख सार ॥१॥
सिपर=ढाल फारसी, सिपर॥ सर-सिर, सीस फारसी, सर॥
(अ) तीर (ॲ) तला, सरोवर संस: सर॥ सरोवर तोण मुराद संसार अरथ ऐअुण
लगेगा, संसार दे सरब प्रकार दे विशिआण (रूपी बाण) तीर (स) वरगा, तुज़ल,
बरज़बर
बान=बाण, तीर जि=जो, जेहड़े
अरथ: श्री गुरू जी दे चरणां (रूपी आसरे ळ आपणे) सीस पर ढाल बणा के सरब
(प्रकार दे) विकाराण रूपी बाण तोण बचं लई अुन्हां ळ ओट बणाइके (मैण
अज़गे दी) कथा, जो सुज़खां दा सार है, कहिंदा हां
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई:श्री अंगद सुनि कथा रसाला
अज़ग्रज गमने दीन दयाला
तब मरदाने बचन अुचारा
धरो प्रभू शूकर१ अवतारा ॥२॥
हिरनाछस दानव हनि कैसे
धरनी आनी भानिये तैसे
इन दैतन को जनम जू क्ररा२
सो कहिये श्री गुरु गुन भूरा ॥३॥
सुनि करि कहिन लगे गुनखानी
-जो सुनि अहै३ पुरान कहानी विशेश टूक
एक समै कज़शप४ जग करि कै
बैठो सदन हरख अुर धरि कै ॥४॥
संधा काल सुता दज़ख५ केरी


*इक लिखती नुसखे विच पाठ बी-सिर-देखं विच आइआ है
१सुर दा
२खोटा
३सुणी होई है
४इक रिखी
५दज़ख दी धी दिज़ती, जो कज़शप दी वहुटी सी

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