Sri Nanak Prakash
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७१. अकाल पुरख मंगल ध्रज़व प्रसंग॥
{राजा प्रिअब्रत} ॥१०॥
दोहरा: अलख अभेख अनत प्रभु, जिणह गति लखी न जाहि
बंदन पद अरबिंद तिह, डाढा बे परवाहि* ॥१॥
अलख=जो लखिआ न जावे, जो नग़र ना आवे, जो इंद्रिआण ते गिआन तोण
परे होवे संस:-अलकश॥
अभेख=जिस दा भेख ना होवे भेख=संस; वेख॥=गहणा, लिबास, चिंन्ह
मुराद है रूप, रेख, रंग अभेख=जो रूप रेख रंग तोण निआरा होवे
अनत=जिस दा अंत ना होवे, अुस दा आदि भी नहीण हुंदा मुराद है बेहद
गति=हालत, दशा, चाल, प्रापती, प्रापती दी डोल, मुराद है कि अनत,
अरूप, अलख होके जिस हाल ओह है अुस हाल दा पता बी नहीण लिखिआ जा सकदा
अरथ: (जो) वाहिगुरू अलख अभेख ते अनत है (अर ऐसा होण करके) जिस दी
गती लखी नहीण जाणदी, (ते जो) बड़ा बे परवाह है, तिस दे चरनां कमलां पर
नमसकार है
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: श्री अंगद जी! सुनि इतिहासूविशेश टूक १
अज़ग्रज गमने पुन सुख रासू
तारे तरै छोरि करि सभिही
अुरध१ पहुंचे श्री गुरु जब ही ॥२॥
मरदाने तब बूझन कीने
मुझहि बतावहु प्रभू प्रबीने
अुडगन इहां न दीसति कोअू
हम किह दिशि तजि आए सोअू? ॥३॥
काण को इहां प्रकाश प्रकाशा?
अति अुज़जल सुंदर सुखरासा
सुनि श्री नानक बचन अुचारे
हम ते तरे रहे अब तारे ॥४॥
नीचे करि मुख लेहु निहारी
रहे प्रकाश थान निच१* झारी२
*डाढा बे परवाह पंजाबी मुहावरा है इक लिखती नुसखे विच-भारी बे परवाह-बी पाठ
वेखिआ है इक लिखती ते छापे विज़च-ठाढा-पाठ डिज़ठा है, जो हिंदी पद तां ठीक है, पर हिंदी
मुहावरे विज़च पाठ ठाढा ठीक नहीण अरथ दी सफलता-डाढा बे परवाह- विज़च है
१अुज़पर