Sri Nanak Prakash
१२६९
७२. गुरचरन मंगल ध्रज़व प्रसंग॥
दोहरा: श्री गुर पग सागर अनणद,
मन निज मीन बनाअुण
कहोण कथा पावन परम,
सुनि श्रोता सुख पाअुण ॥१॥
अरथ: श्री गुरू जी दे चरन अनद दा सागर हन (मैण) आपणे मन ळ (अुस सागर
दी अविज़छड़) मज़छी बणाअुणदा हां (इस प्रेममय दशा विच) परम पविज़त्र
कथा (अगे होर) कहिंदा हां (जिस ळ) सुण के श्रोता जन सुख पाअुण
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: श्री अंगद जी सुनि इतिहासा
मरदाने सोण गुरू प्रकाशा
कहिन लगे पुन दीन दाला
ध्रज़व पुरि को गमनो तिह काला॥२॥
सुनो अुतानपाद सुत आवन१
अमित भयो मन मैण हरखावन
जिन दिजवर सुध आन सुनाई
पट भूखन रथ दीन बनाई ॥३॥
तब भुवाल तिह ले करि संगा
गमनो आगे सहित अुमंगा
दुंदभि२ बेंा३ भेरि४ बजाई
बेद पाठ दिज करति सुहाई ॥४॥
सरुचि, सुनीती युग५ न्रिप६ नारी
सिवका पर७ चढि चली अगारी
न्रिप सुत अुज़तम, लोक बिसाला८
गए लेन हित सभि ततकाला ॥५॥
१पुज़त्र दा आवं
२धौणसे
३तूतीआण
४भेरीआण
५दोवेण
६राजे दीआण
७पालकी ते
८अुज़तम नामे पुज़त्र राजे दा ते ढेर लोकी