Sri Nanak Prakash

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१५८

अधाय तीसरा
३. श्री गुर नानक देव जी दा अवतार॥

{भाई बाले दा सरूप} ॥१..॥ {कलजुग दा ग़ोर} ॥४..॥
{धरती दी पुकार} ॥१५..॥ {बार देश अते तलवंडी महिमा} ॥३२..॥
कोअू कवि अुपमा सु देति पारजात पग
कबिज़त:
कोअू कहे गुरू पग कमल अमल हैण
जोअू पारजात न चितंन गतिदान नाही
अमल कमल रैन विखे मुख मिल है
वै तो सहिचेत देत कामना भगत निज
बासुर औ रजनी मेण एक से सतुल हैण
लखे पद आदर न पारजात कमल को
तां ते पग पग पारजात न कमल हैण ॥१॥
पारजात कलप ब्रिज़छ संस: पारिजात॥ पग चरण
अमल अ मल-मैल तोण रहित
चितंन चेतनता, मन बुज़धी संयुकत होण दी ताकत
गति मुकती रैन रैं, रात
सहिचेत सहि चेत ॥ चेतनताई समेत
बासुर दिन रजनी रात
एक से इको जेहे, भाव अपणे आप दे खेड़े विच इक रस खिड़े रहिंदेहन
सतुल स तुल-इक ब्रज़बर, भाव मुकती दान दे सुभाव विच इक तुज़ल-दाते-ही
रहिंदे हन इक रंग हन
लखे पछांे, सिआणे, समझे पद चरण
आदर न..... सतिकार या आदर योग नहीण
लखे तोण मुराद है कि दोहां दी सदरशता नहीण है चरन ळ कलप ब्रिज़छ ते कमल
दी अुपमा देणी, चरनां दा आदर करना नहीण
पग पग चरण चरण ही हन, भाव अुन्हां दी अुपमा दी होर कोई वसतू नहीण है
अरथ: कोई कवि (गुरू जी दे) चरणां (ळ) कलप ब्रिज़छ (नाल) अुपमा देणदा है,
कोई कहिंदा है (कि) गुरू (जी दे) चरण निरमल कमल (समान) हन;
(पर कवि इह नहीण विचारदे कि) जेहड़ा (तां) कलप ब्रिज़छ (है) नां (तां ओह) चेतन
(है) नां ही मुकती दे देण वाला है, (अते जेहड़ा) निरमल कमल है (अुस
दा) रात विखे मूंह बंद हो जाणदा है
(परंतू जो सतिगुरू जी दे चरण हन) ओह तां चेतनां वाले (हन,) आपणे भगतां
दीआण (मनो) कामना (पूरीआण कर) देणदे हन (अते) दिन ते रात (हर समेण)
विखे इको जेहे (भाव, इक रज़स रहिं वाले अते) इक बरज़बर (भाव, इक
रंग रहिं वाले) हन

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