Sri Nanak Prakash

Displaying Page 147 of 1267 from Volume 1

१७६

कालू तिय बैसे जिस अंदर
अति शोभा सोण लगै सु सुंदर ॥६३॥
सुनि संदेह१ करै जिन२ कोअू
कोटि ब्रहमंड शोभदा जोअू
तिह निवास कीनो जिह थाईण
किअुण न होइ तिह शोभ सवाई ॥६४॥
जाण दिन ते आए जग सामी
भए सरल पुरि महिण जे बामी३
सुचि, संतोखि, धरम, सति, करुना
अस शुभ करमन महिण आचरना४ ॥६५॥
सीत५ सुगंधति६ मंन७ समीरा८
चलै जु हरि ही सभि बिधि पीरा
बादर९ आवहिण भरि भरि बारी१०
बरखहिण नर इज़छा अनुसारी ॥६६॥
फूलहिण फलहिण ब्रिज़ख११ समुदाइ
जनु१२ अनदता१३ बाहर आई
अंतर तिन कै भई अमेअू१४
मनहुण नरन दिखरावहि तेअू ॥६७॥
छित सोहति धरि नव सबग़ाई१५
जिह अुर सभि ते अधिक१ बधाई


*१मतां कोई संसा करे
२मतां कोई संसा करे
३जिहड़े (नर)विंगे (सन अुह सरल) सिज़धे हो गए
४वरतन लग पए
५ठढी
६सुगंधी वाली
७धीमी
८हवा
९बज़दल
१०पानी
११दरखत
१२मानोण
१३खुशी
१४ना समावं वाली हो गई
१५धार के नवीण हरिआवल

Displaying Page 147 of 1267 from Volume 1