Sri Nanak Prakash

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अधाय चौथा
४. गुरू जी दा अवतार अुतसाह ते नाम धरना॥

{कविता दे दोश} ॥१॥{कवि नम्रता} ॥१॥
{नानक पद दे अरथ} ॥५७॥
अंध जु बधर पिंग नगन म्रितक छंद
कबिज़त: {कविता दे दोश}
रुकत अपारथ की, समझ न आवई
वैर देश काल गन अगन नवोण ही रस
बिबधालकार हूं को भेद नहिण पावई
कोअू गुन है न मैण भनति मज़ध जानो मन
गुनीअन हास जोग अटपटी जावई {कवि नम्रता}
एक गुन यामै सु बिदत श्रति संत सुनो
सतिगुरू कीरति सु निरमल भावई ॥१॥
अंध=कविता दा इक दूखं, जिस विच पिछले मंने प्रमंने कवीआण दे बंन्हे होए
त्रीके दे अुलट कुछ किहा जाए
बधर=बधिर-डोरा, कविता दा इक दूखं, रचनां विच पए किसे
पद दा दूसरा अरथ पहिले दा विरोधी होवे
पिंग=पिंगली-कविता दा इक दूखं, जिस विच छंद घज़ट वज़ध लगदा होवे
नगन=नगी, कविता दा इक दोख जिस विच अलकार कोई ना होवे
म्रितक=मोई होई-इक कविता दा दूखं, जिस कविता विच अरथ कोई ना
बणे
छंद=नग़म, कविता
रुकत=रुकत तोण मुराद पुनरुकति है किसेइक गज़ल ळ बारबार कहिंा अरथ
भाव अुहो होवे, ते बेलोड़ा कहिंा
अपारथ=जिस कविता विखे ऐसे बचन कहे होण जिस दे अरथ कीतिआण गज़ल
अटपटी बणे
वैर=विरोध देश=सथान काल=समां
कविता दे दो दूशं, देश विरोधी ते काल विरोध देश विरोध-जिहड़ी शै
जिस देश विच ना होवे अुस देश विच वरणन करनी
काल विरोध-जिहड़ी शै जिस समेण न होवे अुस समेण विच वरणन करनी
गनअगन=पिंगल विच जो वग़न लई गण रखे हन ओह कुछ शुभ गुण ते कुछ
अशुभ गुण मंने जाणदे हन अशुभ गुण ळ कवी अगण कहिंदे हन
(अ) चंगे गण इह हन:-मगण, नगण, भगण, यगण

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