Sri Nanak Prakash
१४७७
१३. संत मंगल तिखान दी छज़परी तोड़नी, भूटंत देश, अंन अगनि रहित
देश प्रसंग॥
१२ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध - ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ१४
{तिखां दी छज़प्री तोड़ी} ॥४॥
{भूटंन देश} ॥१४..॥
{राजे ळ परत्रिअ तिआगण दा अुपदेश} ॥३२..॥
{अंन अगन रहत देश} ॥५४..॥
{दुंबा जिवाइआ} ॥६३॥
दोहरा: पर दुख पिखि करि हैण दुखी, पुर सुख पिखि हरखाइण
मुकति पंथ निस दिन परे, तिन संतन परि पाइण ॥१॥
अरथ: (जो आप) दिन रात मुकती दे रसते अुज़ते टुर रहे हन, (अते) पराइआ
दुख देखॱके दुखी ते पराइआ सुख वेखकेप्रसंन हुंदे हन, अुहनां संतां दे
(मैण) पैरीण पैणदा हां
भाव: जो मुकती मारग दे पंधाअू हन, अुह हरख सोग तोण अतीत रहिं दा जतन
करदे हन; कवि जी दा आशय एथे इह है कि ओह ऐसे शुभ सुभाव वाले
हन कि पराए दुख ते सुखी नहीण हुंदे, पराए सुख ते दुख नहीण मंनदे,
अरथात अुहनां ने सुभाव दा साड़ा ते ईरखा जिज़त लई है दूसरा भाव इह
है कि अुह मुकति मारग दे तुरन वाले पज़थर समान जड़्ह नहीण हो गए, ओह
जीअुणदा जागदा दिल रज़खं वाले हन, हमदरदी अुन्हां दे अंदर है दुखी दे
दुख दूर करन ते सुखी ळ वेखके खुश होण दा दिआलू सुभाव अुन्हां दे अंदर
अुमाहू हुंदा है योग ग्रंथां विच इन्हां दोहां गुणां दा नाम करुना ते
मुदता दिता है*
अगले मंगल विच अुहनां ळ हरख शोक तोण अतीत दज़संगे इस करके पहिले अुन्हां
दी म्रिदुलता दा वरणन कर लिआ ने
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: सुनीए श्री अंगद गतिदानी!
आगै गमन कीन गुनखानी
चलतो पंथ१ ग्राम इक आवा
बसै तिखान भगति मन भावा ॥२॥संतन की सेवा नित करिही
अधिक भाअु हिरदे महिण धरिही
करन क्रितारथ जन२ के हेता
*ओथे मैत्री, करुंा, मुदता, अुपेखा आदि दा फल चिज़त दी प्रसंनता लिखिआ है
१राह विच
२दास