Sri Nanak Prakash
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७. बाल लील्हा, पिता प्रति सपत शलोकी गीता दे अरथ सुनाए॥
{श्री गुर ग्रंथ मंगल} ॥१॥
{सपत शलोकी गीता दे अरथ सुणाए} ॥३१॥
दोत कर चंड महिण, नीति न्रिप दंड महिण
कबिज़त:
दान गज गंड महिण, शोभति अपार है
हवी* जिम खीर महिण, धीर जिम बीर महिण
सीर जिम नीर महिण होति सुखकार है
जौन्ह जिम इंद महिण, गंधिअरबिंद महिण
मोख ततबिंद महिण, जान निरधार है
सज़छ जस दान महिण, तान जिम गान महिण
ग्रंथ गरु गान महिण, तैसे रस सार है ॥१॥
दोत=सूरज, संस: आदितया (अ) दोत=धुज़प॥ (अ) तुक दा दूजा
अरथ-धुज़प दीआण रिशमां विच जिवेण तेज सुभाइमान हुंदा है
कर=किरण चंड=तेज, त्रिज़खापन, गरमी महिण-विज़च
नीति=राज नीती, मुराद एथे इनसाफ तोण है कि अनीती दा दंड ना देवे, नीती
नाल दंड देवे
न्रिप=राजा दंड=सग़ा दान=दान देणा, मुराद चों तोण है गज=हाथी
गंड=गज़ल्ह, रुखसारा, मूंह दा इक पासा, पुड़पुड़ी तोण लै गल्हां समेत ळ आखदे
हनहाथी दे गंडसथल तोण मद चोणदा है
हवी=घिअु, थिंधाई, जो दुज़ध विच हुंदी हैसंस: हविस=घिअु॥
खीर=दुज़ध संस: कशीर॥ धीर=धीरज बीर=सूरमा
सीर=सीतलता, सीअरापन, ठढ नीर=पांी
जौन्ह=चांदनी इंद=चंद्रमां अरबिंद=कमल
ततबिंद=ततवेता संस: तत=असलीअत विंद=जानं वाला, धातू
विद=जाणना॥
निरधार=निशचे, निरणे करके सिज़ध हो चुकी गल संस: निरधार॥
सज़छ जस=निरमल जस, निरमल कीरती
(अ) जैसे सज़छता दान दीसफलता दा मूल है
(ॲ) दान विच सज़छ कलान जिवेण हैण
तान=सुर, धुन, सुराण दा फैलाव, लय दा विसथार, मूरछना आदि दुआरा राग
दा विसथार (अ) तान=गान दा विशय
गान=गायन, गाअुण-तुक दा अरथ जीकूं गायन विच गान दा विशा हुंदा है
*पा:-घीव