Sri Nanak Prakash
३२०
मन ही मनहि मनाव महेशा
पूज चंडिका बहुर गनेशा ॥२६॥
-सुत शरीर को करहु अरोगा
देअुण अुपाइन३ जस४ जिस जोगा५
बंदहि कर धर पर धरि सिर को६
नमो करहि स्री लखमी बर को७ ॥२७॥
सुत कर गहि करि८ बहुरो बोली
कहहु आपनी पीरा खोली
तिस पर मैण करिवाअुण इलाजा
बैद बुलाइ बिलम बिन९ आजा ॥२८॥
मशट१० करी बेदी कुल नाथाअुतर न देण को जननी साथा
सुधि लेवन आवहिण सभि गाती
जिन को नहिण अस रीति सुहाती ॥२९॥
भोजन खाति न पीवति नीरू
हेरति बेदी भए अधीरू
भूर बिसूरति११ सभि परवारू
रुज१२ न पाइ नहिण करि* अुपचारू१३ ॥३०॥
कालू सोण बोले मिलि सोअू
तव तनुजहि१४ को दुख है कोअू
१इलाज
२इज़छा कीती
३भेटा
४जैसी
५लाइक
६जमीन पुर रख के सिर
७माया पती, ईशर ळ
८हज़थ फड़ के
९देरी तोण बिना भाव छेती
१०चुप
११झूरदा है
१२रोग
*पाठांत्र-होइ-, -कहि
१३इलाज, दवा
१४पुज़त्र ळ