Sri Nanak Prakash

Displaying Page 365 of 1267 from Volume 1

३९४

मोदी दी कार लेखा कीता १३५ वाधा निकले॥

{लेखा कीता, १३५) वाधा निकले} ॥७५॥
दोहरा: श्री अरजन१ अरग़न सुनति अरजन जस विसतार
बानी अरजुन बान जिन बंदन पद सिर धारि ॥१॥
अरजन=श्री गुरू अरजन देव जी पंजवेण पातशाह
अरग़न=अरग़ां ळ अरग़=बेनती॥ बेनतीआण ळ
अरजुन=चिज़टा, अुज़जल
(अ) अरज न=अरज=इछा रहत, (इज़छा रहित हन,
न=नही ते नहीण जस विसतार दी (लोड़ जिन्हां ळ)
(ॲ) अर=अते (अते जगत (विच जिन्हां दा) जस
जन=जगत विसतार हो रिहा है
(स) अरि जन=वैरी लोक भाव, वैरी लोक वी जिन्हां दा जस करदे हन
अरजुन=पांडवाण विचोण तीसरा, जिहड़ा धनुख बाण दी विदा विज़च इक चोटी दा
प्रबीन मंनिआ गिआ है, क्रिशन जी दी भैं दा इह पती सी
अरथ: (जिन्हां दा इह) अुज़जल जस (जगत विच) फैल रिहा है कि (अुह दासां
दीआण) बेनतीआण सुण लैं वाले हन (अते)जिन्हां दी (अुचारी होई) बाणी
अरजन दे तीराण वाणगू (मन विच अमोघ घाअु पाअुण वाली) है, (अुन्हां), श्री
(गुरू) अरजन (देव जी, दे) चरनां पर सिर धर के (मैण) मज़था टेकदा हां
श्री बाला संधुरु वाच ॥
दोहरा: मिलो जाइ कै नानकी, मन करि अधिक सनेह
असन२ बसन३ आनो हुतो, दयो बैस करि ग्रेह४ ॥२॥
सोरठा: आयो बहुर जराम, सादर५ तिह६ बंदन करी
मिलि बैसे सभि* धाम, रिदा अमोदहि१ संग भरि ॥३॥


१अरजन पद संसक्रित विच इह रूप रखदा है:-अरजुन इस दे अरथ बहुत हन यथा:-१.
क्रिशन दा मिज़त्र जो अुन्हां दी भैं दा पती ते पांडव सी २. हग़ार बाहां वाला इक राजा
सहस्रारजन, जिस ळ परसराम ने मारिआ सी ३. इक प्रकार दा ब्रिज़छ ४. अपणी माता दा
इकलौता बेटा ५. मोर ६. चिज़टा रंग, अुज़जल ७. अज़खां दी इक बीमारी ८. हिंदी विच कदे
किते-कलप ब्रिज़छ दे अरथां विच बी आया है ९. सज़छ १०. वेद विच इस दा अरथ इंद्र बी
आया है धातू इस दा है अरजन प्रापत करना, बनाअुणा ११. अरबी पद है, अरग़ इस दे
अरथ हन बेनती, कवि जी ने इस पद दे अरबी रूप अरजुळ-नना-ला के बहु बचन बनाया
है, अरजन बेनतीआण, अरदासां, अरग़ां
२भोजन
३कपड़े
४घर
५आदर नाल
६अुसने

Displaying Page 365 of 1267 from Volume 1