Sri Nanak Prakash
४१३
.१९. स्री गुरू हरगोविंद मंगल सतिगुरू जी दी सगाई॥
{गुरू जी दे नानकिआण दा ग़िकर} ॥२०॥{मरदाने ळ कीरतन दा वर} ॥६५..॥
दोहरा: श्री गुरू हरिगोविंद जी पद अरबिंद मनाइ
कहोण कथा सुखदाइनी सुनो सिज़ख चित लाइ ॥१॥
अरबिंद=कमल अरविन्र॥
मनाइ=मनाअुणा=आराधन करना, धिआअुणा, चित विच धिआन धार के
नमसकार करनी
अरथ: श्री गुरू हरिगोबिंद जी दे चरनां कमलां ळ मना के सुख देण वाली कथा
(अज़गोण) वरणन करदा हां, (हे) सिज़खो! चित ला के सुणो
श्री बाला संधुरु वाच ॥
सैया: केतिक काल बितीत भयो
भलि रीति सोण मोदी की कार चलाई
तोलति ले तकरी१ कर मैण
हरिखाइ कै लेति हैण२, देति३ सवाई
जाचिक४ आवति कीरति को सुनि
जो मन भावति पावति साई
होइ रहे बिसमाद सभै नर
कीनि रसाइन५ कै६ धन पाई ॥२॥
जानैण न भेद अछेद यही
करतार सरूप धरा अवतारा
दंभ निकंदन आनद कंद
सु नाम जपावन को तन धारा
नअु निधि, सिज़धि अठारहिण* जे
कर बंदि कै७ ठांढी रहैण दरबारा
कौन कमी हुइ तांहि सथान१तज़कड़ी
२लोकी लैणदे हन
३(गुरू जी) देणदे हन
४मंगते
५रसैं
६जाण
*देखो पहिले अधाय दे सतार्हवेण छंद विखे इन्हां दे नाम
७हज़थ जोड़के