Sri Nanak Prakash

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नारिनि३* की भीर भरी हेरि४ सुख पावई ॥९॥
हुती कुल रीति जोअू कालू सभि कीनि सोअू
आए बेदी सभि कोअू रिदे हरखाइ कै
बोलि कै बदन५ निज ससुरे६ सदन
सुध भेजी७ जसपद८ एक मानव पठाइ कै
सुनी मन भाए तिन मंगल कराए बहु
लेय कै समाज सभि आए सुख पाइ कै
मिल कै विचार करि चले सुलतानपुरि
-सौज९ लीजै सरस१० न दीजीए भुलाइ कै ॥१०॥
सैया: कालू गयो तब राइ के पास
करी अरदास तग़ीम बखानी११
नानक दास तुमारै को बाहि
चलोण१२ सुलतानपुरे मम ठानी
आइसु१३ लेनि कौ आयो मैण राइ जी!
देहु बुझाइ कै बात सयानी
रोस मैण राइ भयो सुनि कै
मति कालू रही तुझ१४ नीत अजानी१५ ॥११॥
तात पछानति१, भेद लखैण नहिण


१नगारा
२दरवाजे अज़गे
३इसत्रीआण
*पा:-नरन- है४वेखके
५मुखोण
६सहुरे
७खबर घज़ली
८छेती
९समान
१०वधेरा
११सलाम कीती
१२मैण चलिआ हां
१३आगा
१४तेरी (मति)
१५सदा अंांा वरगी
तलवंडी दे राजा राइ बुलार जी दा सिदक असां लई सिखा दाता है, आप किस अदभुत
जुगती नाल छंद १३वेण विच बाबा कालू जी ळ समझा रहे हन कि मुकट सिर पर शोभदा है, पैरीण

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