Sri Nanak Prakash

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४. गुर चरन मंगल दुनी चंद ळमिलंा ते तलवंडी औंा॥
३ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध - ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ५
दोहरा: चरन कमल सतिगुरू के, सुख को सदन पछान
बसहिण सदा मन, सथिर है, लहहि परम कलान ॥१॥
सदन=घर
बसहिण=बस जाणदे हन
सदा=नित, भाव पज़के होके
सूचना: किधरे पाठ बसहु है फिर अगे लहहि दी थां भी पाठ लहहु चाहीदा
है, अरथ हो जाएगा (हे चरनो! मेरे) मन विच वस जाओ तां जो एह (मन)
टिक जावे ते मैळ परम कलान प्रापति होवे
अरथ: सतिगुरू जी दे चरण कमल सुख दा घर (हन, इह गज़ल) पछां लै, (जिस)
मन (विच एह) पज़के होके बस जाणदे हन (अुह) टिक जाणदा है (ते अंत) परम
कलयां ळ प्रापत करदा है
श्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: श्री अंगद सुनीए गुनभवन!
तिह ते कीन गुरू पुन गवन
लवपुरि१ के जब गए समीपा
करी सथित बेदी कुलदीपा ॥२॥
दुनी चंद तहिण बनीआ भारी {दुनी चंद}
गुर कीरति तिस सुनी अगारी
तिह दिन कीनो श्राध बिसाला
पित की बरसींी२ लखिकाला ॥३॥
सुनि करि आगम क्रिपा निकेता३
सो आवा लेने के हेता
पद अरबिंद सु बंदन कीना
बिनै भनी बहु होइओ दीना ॥४॥
पूरन पुरख लखहु हम प्रीता
चलहु सदन को करहु पुनीता
तिह बिलोकि कै प्रेम बिसाला
गमन कीओ अुठि संग क्रिपाला ॥५॥


१लाहौर
पुरातं जनम साखी विच बी इह साखी है
२वर्हे दा दिन
३गुरू जी दा

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