Sri Nanak Prakash

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२६. शारदा मंगल सिरी चंद जनम॥

{सिरी चंद जी दा जनम} ॥५६॥
दोहरा: अमल कमल दल ललित चख, सुरसरि जल सम देहि
करन हार मंगल सकल, नमहि चरन पर लेहु ॥११
अमल=अ मल=नहीण है मैल जिस विच, निरमल
ललित=सुहणे, पारे चख=नेत्र, नैं
सुरसरि=गंगा मंगल=खुशीआण सकल=सारीआण
नमह=नमसकार लेहु=लवो, सीकार करो, कबूलो
अरथ: हे निरमल कमल दी पंखड़ी वरगे ललित नेत्राण वाली (जिसदा) सरीर गंगा
दे जल वरगा (सज़छ) है, (ते जो) सारे मंगलां दे करन वाली हैण (अपणे)
चरनां पर मेरी नमसकार सीकार करो
भाव: इज़थे हुण पिज़छे त्रै रंगां दी इक सरूपता शकती जो वरणन कीती सी अुसे दी
सुंदरता निरमलता खुशीदाता होणा दज़स के साबत करदे हन कि ओहनां दी
शारदा इहो है ते अुज़से दा गुण कथन करदे हन
श्री बाला संधुरु वाच ॥
तोटक छंद: नित नानक आपनि१ पै२ सु रहैण
जिह* हेरनि३ ते अघ४ ओघ५ दहैण
करुना करि डीठ पिखैण जिहको
भव६ सिंध७ अुधार करैण तिह को ॥२॥
इक दोस गए भगनी सदन
बिन अंक मयंक८ बनो बदन
पद९ मंदहि मंद धरैण धरनी
अुपमा अरबिंद१० भले बरनी ॥३॥


१हज़ट
२अुते
*पा:-जिस
३वेखं
४पाप
५सारे
६संसार रूपी समंदर तोण
७संसार रूपी समंदर तोण
८कलक बिना चंद्रमा वरगा
९चरन
१०कवल दी
पाठांत्र:-अलब्रिंद भौरिआण दी डार

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