Sri Nanak Prakash

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२९. गुरचरण मंगल वेणईण तोण बाहर आअुणा, मोदी दी कार तागणी॥

{संतघाट} ॥७॥
{मोदीखाना लुटाअुणा} ॥१७..॥
{मोदीखाना लुटा मसां विज़च} ॥२४॥
{लेखा, ७६०) वाधे दे निकले} ॥३९॥
दोहरा: स्री गुर चरन जहाज से तिन अलब हौण पाइ
परोण पार संदेह बिन अुदिध बिघन समुदाइ ॥१॥
अलब=आसरा, संस: आलमब॥ हौण=हअुण, मैण संस: अहं॥
संदेह=शज़क अुदिध=समुंदर, संस, अुदधि॥
अरथ: श्री गुरू (साहिबान) जी दे चरण जहाग़ समान हन, अुन्हां दा आसरा पा के
मैण सारे विघनां (रूपी) समुंदर तोण निरसंसे पार जा पवाणगा
श्री बाला संधुरु वाच ॥
सैया: या बिधि सोण सुलतानपुरे
पुनि स्री गुर जाति भए प्रभु पासीआनद कंद१ पिखो कर बंदि२
कही अभिबंदन३ दंड संकासी४
मंदहि मंद५ म्रिदं६ मुशकाय
धान जुगिंदन७ के नित बासी८
बैन भने गुन ऐन प्रमेशुर
आवहु नानक! नाम बिलासी९ ॥२॥
कारन या१० अवतार धरो भव११
कारज जाइ करो अब सोअू
है कलिकाल कराल१२ बिसालहि


१भाव परमेशुर ळ (अ) गुरू जी ने
२हथ जोड़के
३नमसकार
४भाव डंडौत कीती
५हौली हौली
६कोमल
७योगीआण दे धान विज़च वसं वाले भाव रज़ब जी
८योगीआण दे धान विज़च वसं वाले भाव रज़ब जी
९नाम दा आनद लैं वाले
१०जिस
११संसार विच
१२भानक

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