Sri Nanak Prakash
१८७७
४१. दसम गुर मंगल अुबारे खान, अवदल रहमान॥
४०ੴੴ पिछला अधिआइ ततकरा अुतरारध - ततकरा पूरबारध अगला अधिआइ ੴੴ४२
{अुबारेखान} ॥२..॥
{अद्रहमान} ॥२४..॥
{जराह दा द्रिशटांत} ॥७९..॥
दोहरा: गुरु गोबिंद सिंघ सिमर नित, अपर न जाणहि समान
जियति राज सुख सरबदा, मरति मुकति देण दान ॥१॥
अपर=होर
जियति=जीअुणदिआण
राज सुख=ऐशरज दा सुख, (अ) सिर सुखां दे सुख, वज़डा सुख
सरबदा=सदा, हमेशां
अरथ: श्री गुरू गोबिंद सिंघ जी ळ सदा सिमर जिन्हां दे तुज़ल होर कोई नहीण, जो
जीअुणदिआण सरबदा ऐशरज दा सुख (देणदे) ते मरिआण मुकती दा दान दिंदे
हनश्री बाला संधुरु वाच ॥
चौपई: श्री अंगद सुनि कथा महाना
मालो मीत हुतो इक खाना {अुबारेखान}
सो जबि मिलिन हेत ढिग आवा
करि कै हरख सलाम अलावा ॥२॥
बैठो निकट धरै अनुरागा
तबि गुर के गुन गावन लागा
सुनहु अुबारे ां जु ुदाइ
नानक नाम कहायो आइ ॥३॥
जिह१ गुन नागराज२ नित गावति
तज़दपि नहीण पार को पावति
सो कैसे मैण सुख ते भाखोण
सदा नाम को अुर महिण राखोण ॥४॥
तुम अब जाहु दरस को करीए
अुर को सरब भरम परहरीए
अस सुनि श्री गुर केर प्रशंशू
तूरन चलो, खान जिस बंसू३ ॥५॥
१जिस दे
२शेशनाग
३पठान जिस दी जात सी