Sri Nanak Prakash
६२७
३१. सारदा मंगल, मुज़लां निसतारा, मसीत ते नाब दा प्रसंग॥
{नवाब दुबिधा विज़च} ॥११॥
{नवाब ने मुज़लां ळ भेजंा} ॥११॥
{मुज़लां ळ अुपदेश} ॥२५॥
नराज छंद: मरालबाहिनी क्रिपालु, हाथ जोरि बंदना
कहोण कथा विचारि चारु, तीन ताप कंदना
धिआन धरि बार बार, सारदा सरूप को
सु जास को प्रसादि पाइ, सेमुखी अनूप को ॥१॥
मरालबाहिनी=हंस जिसदी असवारी होवे, शारदा ळ हंस ते चड़न वाली
कवीआण ने संकेत कीता है हंस अुज़जल, सुहणा मानसरोवर वरगे निरमल ठढे थां
रहिं वाला मंनिआ है चारु=सुंदर
सेमुखी या से मुकी=ओह कविता जो सुतेसिज़ध आपे अुचरी जाए ते जिस विच
खिज़च तां ना होवे ते होवे सुंदर* संस: सयमुक सयं=आपे अुकति=अुचारण॥
अरथ: हंस अुते चड़न वाली (ते सुभाव दी) क्रिपालू (शारदा! तैळ) हज़थ जोड़के
नमसकार है तिंनां तपां दे दूर करन वाली सुंदर कथा मैण हुण विचारके
कहिं लगा हां (इस लई) बारबार सारदा! (तेरे) सरूप दा धिआन
धारदा हां, जिस दी क्रिपा नाल अनूपम ते सयं अुचरी जाण वाली (कविता)
प्रापत हुंदी है
भाव: शारदा संबंधी विशेश विचार लई देखो पोथी दा अधाय १ छंद २
श्री बाला संधुरु वाच ॥
दोहरा: बाकी श्री गुर की जिती मूले श्रत सुनि सोइ
लैनि हेत तिन के तबै गयो लोभ मैण होइ ॥२॥
नराज छंद: गयो सु मूल चंद भूल, भेद नांहि जानिया
पुकारि कै निबाब पास बैन यौण बखानिया
'नयाइ मोर कीजीए, सवाब१ जानि आपनो
कुनीति२ भूप क्रिज़त ना३, तजंत भूर पाप नो४ ॥३॥
अड़िज़ल: सुनि करि श्रवन नवाब, भनै५ तूं कौन है?
*ंअटुरअल डलोासुते वेग वाली कविता, जिस बाबत किहा है:- आपे आई शोभ है कविता
बनिता दोइ बल कर खैणचे जो इन्हे सरसा बिरसा होइ॥
१पुंन
२अनाय
३नहीण करदे
४ळ
पा:-श्रवनत बात
५किहा